Kaka ki kulhadi story

 

काका की कुल्हाड़ी – Kaka ki kulhadi story in hindi



किसी गांव में एक व्यक्ति रहते थे प्रेमचंद। लोग उन्हें प्यार से काका बुलाते थे। काका एक फैक्ट्री में पेड़ काटने का काम करते थे। फैक्ट्री मालिक उनके काम से बहुत खुश रहता और हर एक नए मजदूर को उनकी तरह कुल्हाड़ी चलाने को कहता। यही कारण था कि ज्यादातर मजदूर उनसे ईर्ष्या करते थे।

एक दिन जब मालिक काका के काम की तारीफ कर रहे थे तभी एक नौजवान हट्टा-कट्टा मजदूर सामने आया और बोला, “मालिक! आप हमेशा इन्ही की तारीफ़ करते हैं, जबकि मेहनत तो हम सब करते हैं। काका तो बीच-बीच में आराम भी करने चले जाते हैं, लेकिन हम लोग तो लगातार कड़ी मेहनत करके पेड़ काटते हैं।”

इस पर मालिक बोले, “भाई! मुझे इससे मतलब नहीं है कि कौन कितना आराम करता है, कितना काम करता है, मुझे तो बस इससे मतलब है कि दिन के अंत तक किसने सबसे अधिक पेड़ काटे हैं। इस मामले में काका आप सबसे 2-3 पेड़ आगे ही रहते हैं, जबकि उनकी उम्र भी हो चली है।” 

मजदूर को ये बात अच्छी नहीं लगी। वह बोला-

अगर ऐसा है तो क्यों न कल पेड़ काटने की प्रतियोगिता हो जाए! कल दिन भर में जो सबसे अधिक पेड़ काटेगा वही विजेता बनेगा। इस पर मालिक तैयार हो गए।

अगले दिन प्रतियोगिता शुरू हुई। मजदूर बाकी दिनों की तुलना में इस दिन अधिक जोश में थे और जल्दी-जल्दी हाथ चला रहे थे। लेकिन काका को तो मानो कोई जल्दी न हो, वे रोज की तरह आज भी पेड़ काटने में जुटे थे।

सबने देखा कि शुरू के आधा दिन बीतने तक काका ने 4-5 ही पेड़ काटे थे जबकि और लोग 6-7 पेड़ काट चुके थे। सबको लगा कि आज काका हार जायेंगे। ऊपर से रोज की तरह वे अपने समय पर एक कमरे में चले गए जहाँ वो रोज आराम करने जाया करते थे।

सबने सोचा कि आज काका प्रतियोगिता हार ही जायेंगे।

बाकी मजदूर पेड़ काटते रहे, काका कुछ देर बाद अपने कंधे पर कुल्हाड़ी टाँगे लौटे और वापस अपने काम में जुट गए।

तय समय पर प्रतियोगिता ख़त्म हुई।

अब मालिक ने पेड़ों की गिनती शुरू की।

बाकी मजदूर तो कुछ ख़ास नहीं कर पाए थे लेकिन जब मालिक ने उस नौजवान मजदूर के पेड़ों की गिनती शुरू की 1..2..3………..11 सब ताली बजाने लगे क्योंकि बाकी मजदूरों में से कोई 10 पेड़ भी नहीं काट पाया था।

अब बस काका के काटे पेड़ों की गिनती होनी बाकी थी।

मालिक ने गिनती शुरू की 1..2..3..4..5..6..7..8..9..10 और ये 11 और आखिरी में ये बारहवां पेड़….मालिक ने ख़ुशी से ऐलान किया।

काका प्रतियोगिता जीत चुके थे। उन्हें 1000 रुपये इनाम में दिए गए। तभी उस हारे हुए मजदूर ने पूछा, “काका, मैं अपनी हार मानता हूँ, लेकिन कृपया ये तो बताइये कि आपकी शारीरिक ताकत भी कम है और ऊपर से आप काम के बीच आधे घंटे विश्राम भी करते हैं, फिर भी आप सबसे अधिक पेड़ कैसे काट लेते हैं?”

इस पर काका बोले-

बेटा इसका बड़ा सीधा सा कारण है कि जब मैं आधे दिन काम करके आधे घंटे विश्राम करने जाता हूँ तो उस दौरान मैं अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज कर लेता हूँ, जिससे बाकी समय में मैं कम मेहनत के साथ तुम लोगों से अधिक पेड़ काट पाता हूँ। सभी मजदूर आश्चर्य में थे कि सिर्फ थोड़ी देर धार तेज करने से कितना फर्क पड़ जाता है।


शिक्षा – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आप जिस किसी भी क्षेत्र में हों, आपकी योग्यता आपकी कुल्हाड़ी  है जिससे आप अपने पेड़ काटते हैं यानी अपना काम पूरा करते हैं। शुरू में आपकी कुल्हाड़ी कितनी भी तेज हो, समय के साथ उसकी धार मंद पड़ती जाती है। इसीलिए हर एक को काका की तरह समय-समय पर अपनी धार तेज करनी चाहिए अर्थात अपने कार्य क्षेत्र से जुड़ी नयी बातों को सीखना चाहिए, नयी कला को प्राप्त करना चाहिए और तभी सैकड़ों-हज़ारों लोगों के बीच अपनी अलग पहचान बना पायेंगे और अपने क्षेत्र के विजेता बन पायेंगे।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *