बचपन की सीख – Bachpan ki seekh story in hindi
एक महान व्यक्ति थे ईश्वरचन्द्र। उनके जीवन में उनकी माता का बहुत बड़ा योगदान था। जब वे छोटे थे तब एक बार उनके घर के पास कोई व्यक्ति बहुत गंभीर हालत में पड़ा हुआ था। उसके पास ना खाने को कुछ था और न ही अपने इलाज के लिए पैसे ही। उस वक्त ईश्वरचन्द्र के पास उस गरीब की सहायता हेतु कुछ नहीं था। वे दौड़ कर अपनी माँ के पास गये लेकिन माँ के पास भी इलाज के लिए देने को कुछ नहीं था। तब माँ ने अपने आभूषण निकाल कर पुत्र के हाथों में रखे और कहा बेटा इन्हें बेचकर उस रोगी की मदद करो। तब पुत्र ने कहा – माँ ये आभूषण तो तुम्हारी माँ ने दिए थे। ये तुम पर बहुत अच्छे भी लगते हैं और तुम्हें प्रिय भी हैं। तब माँ ने उसे समझाया कि बेटा! यह आभूषण तो केवल देह की शोभा बढ़ाते हैं लेकिन किसी जरुरतमंद के लिए किया गया कार्य, मन और आत्मा की शोभा बढ़ाता है। तू ये आभूषण ले जा और उस रोगी का उपचार कर। जब तू बड़ा होगा तब मुझे यह आभूषण बनवा देना।
कई वर्षों बाद, जब ईश्वरचंद्र ने पहली बार धन अर्जित किया तब उन्होंने अपनी माँ को आभूषण बनवा कर दिए और कहा कि माँ – आज तेरा कर्ज पूरा हुआ।
तब माता ने कहा बेटा! मेरा कर्ज तब पूरा होगा जब मुझे किसी जरुरतमंद के लिए फिर आभूषण नहीं देने होंगे और संसार के सभी लोग संपन्न होंगे। तब ईश्वरचंद्र ने अपनी माँ को वचन दिया – माँ अब से मेरा पूरा जीवन जरुरतमंदों के लिए समर्पित होगा। तब से ही ईश्वरचंद्र ने अपना सम्पूर्ण जीवन दीन- दुखियों के लिए समर्पित कर दिया और उनके कष्ट कम करने में बिता दिया।
शिक्षा – व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास महान कर्मों से होता है और अच्छे कर्म, सद्गुणों के कारण पनपते हैं। अच्छे गुणों का विकास कभी एक दिन में नहीं होता बल्कि बाल्यकाल की शिक्षा से ही होने लगता है। किसी भी महापुरुष के जीवन में उनकी परवरिश का विशेष योगदान होता है। सामान्यतः माता की सीख ही मनुष्य का सर्वांगिक विकास करती है। इसलिए सभ्य और उन्नत राष्ट्र निर्माण के लिए बालकों का चरित्र निर्माण परम आवश्यक है।